#प्रीतम के खास दोहे
#प्रीतम के खास दोहे
नाराज़ उसी से हुआ,जो था दिल नज़दीक।
चाहत और बढ़ा गई,दूरी की ये लीक।।
याद जगे जब दूर हो,तड़प बढ़े दिन रैन।
प्यार उसी को मानिए,संग मिले दे चैन।।
ग़लती समझे पल उसी,लेता उसे सुधार।
मीत सयाना मैं कहूँ,शुद्ध करे मन ख़ार।।
रूठ रहे पर मन सहे,छोड़े ना अभिमान.
ख़ुद का ख़ुद ही शत्रु वो,भ्रम बुनता अनजान।।
लाख टके की बात है,समझे वही सुजान।
मैं में फूला जो रहे,ख़ुदा खुदा अनजान।।
जिदद नहीं मन कर बड़ा,हो जाओ गुणवान।
काँटे ऊपर फूल है,चाहे जिसे जहान।।
लघु समझे मैं हूँ गुरू, लकड़ी मुरली रूप।
एक जले है आग में,एक हरे मन भूप।।
#आर.एस.”प्रीतम”