#प्रीतम की मुकरियाँ(02)
शब्द-शब्द में माधुर्य भरा।
जिसने मेरा मन हृदय हरा।
शोभा देती जिसकी बिंदी,
हे सखि साजन?ना सखि हिंदी।
जिसके आते रौनक आए।
तन-मन घर-आँगन खिल जाए।
जिस बिन जीवन सूना नकली,
हे सखि साजन?ना सखि बिजली।
मेरी आन बान शान वही।
पहचान वही सम्मान वही।
जिसका प्यार बना महक इत्र,
हे सखि साजन?ना सखि चरित्र।
मन को मोहे गीत सुनाकर।
उर प्यार जगे उसे चाहकर।
रहना चाहूँ उससे घुलमिल,
हे सखि साजन?ना सखि बुलबुल।
सुख-दुख के सारे भाव सुने।
तन्हा कभी ना वो मुझे करे।
चाहत उसकी बहती सरिता,
हे सखि साजन?ना सखि कविता।
हृदय लगे वो प्यार जताए।
छोड़ मुझे वो दूर न जाए।
अपनेपन का करे उजाला,
हे सखि साजन?ना सखि माला।
(C)(R)-आर.एस.’प्रीतम’