‘प्रीतम’ की मुकरियाँ
मीठा बोले मन आनंद भरे।
आकर्षित अपनी ओर करे।
दूर करे वो तन-मन बोझिल,
हे सखि साजन?ना सखि कोकिल।
सुंदर अपना रूप बनाकर।
बस जाए आँखों में आकर।
हरता जाए दिल को पलपल,
हे सखि साजन?ना सखि काजल।
अंग-अंग में जो जोश भरे।
संग मिले तो मदहोश करे।
दूर करे वो रात तन्हाई,
हे सखि साजन?ना सखि रजाई।
भूल करूँ तो वो समझाए।
प्रेम भरी वो राह दिखाए।
स्पर्श तोड़ता मन सन्नाटा,
हे सखि साजन?ना सखि चाटा।
मुझे नींद में देख जगाए।
अंग-अंग को छेड़े जाए।
सोने देता ना वो मनभर,
हे सखि साजन?ना सखि मच्छर।
दिन मेरे ही साथ बिताता।
शाम ढ़ले दूर चला जाता।
हैरानी मन में करे दर्ज़,
हे सखि साजन?ना सखि सूरज।
(C)(R)-आर.एस.’प्रीतम’