प्रिय विरह
करवट-करवट रात ये, करती गई उदास।
अंतस बसता विरह का,ये कठोर आभास।।
जैसे मछली जल बिना, तुम बिन मैं निष्प्राण।
बरसो घन बन प्रीत का, दे दो जीवन त्राण।।
अद्भुत अनुपम सृष्टि सब, सरस सुखद मधुमास।
मधुर स्वप्न नित नयन में,अंतस जगती प्यास।।
यादों में आते कभी, कभी जगाते ख्वाब।
अलग-अलग अंदाज से, करते हो बेताब।।
बिखर गए हैं स्वप्न सब, पतझड़ किया विनाश।
पुष्प सभी मुरझा गये, जला प्रेम का पाश।।
पवन वसंती सुन जरा, मेरे प्रिय को भेज।
फिर तन की ज्वाला घटे, सजे प्रणय का सेज।।
राह देखते देखते, आँखें हो गई लाल।
अब तो आ जाओ सजन, बीते कितने साल।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली