‘प्रिय मुझे छुपा लो’
मुझे छुपा लो तुम अपनी, बाँहों के विस्तृत घेरे में।
पथरीले पथ ने मेरे, पाँवों को,
घायल कर डाला।
विरह निशा ने, जागी आँखों में बस,
काजल भर डाला।
दीया जला दो, भय लगता है, मन के गहन अँधेरे में।
मुझे छुपा लो तुम अपनी, बाँहों के विस्तृत घेरे में।।
सोचे-समझे हुए हादसों ने,
आशाएं जीवित कीं,
कुछ सुलझी, कुछ अनसुलझी,
बाँतों ने चाहत सीमित कीं।
हौले से परदा ढलका दो, मेरे सपन घनेरे में।
मुझे छुपा लो तुम अपनी, बाँहों के विस्तृत घेरे में।।
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ