प्रिय प्रिया
॥प्रिय प्रिया॥
आप तो फूल थी गुलाब की, मैं सुगंध ढूंढ रहा था; सुनो प्रिय प्रिया।
आप तो स्वाद थी नीम की, मैं शहद ढूंढ रहा था; सुनो प्रिय प्रिया।।
बात-बात में गुस्सा करने वाली, एक ही राग विलाप करने वाली; सुनो प्रिय प्रिया।
अचानक हंसमुख चेहरा वाली, बन गई कैसे सुंदर सूर वाली; सुनो प्रिय प्रिया।।
अब आप इतना हंस रही हो, जो कभी इतना हंसा ना करती थी; सुनो प्रिय प्रिया।
अब इतना सबको समझ रही हो, जो कभी किसी को कुछ ना समझती थी; सुनो प्रिय प्रिया।।
आप सुन्दर तो हो पर कभी, चेहरे से सुन्दरता झलकता हुआ पाई नहीं; सुनो प्रिय प्रिया।
आज वही चेहरे के पिंपल्स भी, शबनम की बूंद सा सुंदर दिखाई देते हैं छाई नहीं; सुनो प्रिय प्रिया।।
गोरा सा बदन आपका, खाली सा सदन है आपका; सुनो प्रिय प्रिया।
कुछ सा पंक्तियां आपका, लिखे लगन है आपका; सुनो प्रिय प्रिया।।
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कवि – जय लगन कुमार हैप्पी ⛳