‘प्रिय! नैनो ने चुन लिया तुम्हें’
प्रिय
नैनो ने चुन लिया तुम्हें
छू लिए तुम्हारे चरण
रहा नहीं बाकी फिर कोई मिलन
साँसों ने कर लिया
भावों का सत्कार
परोस दिया इच्छाओं के
व्यंजन का थाल
मन ने हर लिया
मन का हर भार
बातों ने कर लिया
शीतल मनुहार
कर गई आशाओ की बाँहें
तुम्हारे विश्वास का आलिंगन
महक पड़ा सत्य से सजा
कल्पनाओ का उपवन
और बंध गया, बिना शर्तों के
एक पूरा जीवन
प्रिय
सपनों ने बुन लिया तुम्हें
ढाँप लिया पूरा तन-मन
रहा नहीं बाकी
अब कोई मिलन।
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ