प्रिय जीवनसाथी
प्रिय जीवनसाथी
किसी और के आंगन की पौधा
मेरे घर की छाया बन जाती है ।
दो दिल एक जान बनकर
जीवन भर साथ निभाती है ।।
छोड़कर अपने सारी यादें
एक नई जिंदगी बसाती है ।
छोड़ के सपने बचपन की
एक नई कहानी बनाती है ।।
एक चुटकी सिंदूर के बदले
जीवनभर लाज बचाती है ।
जीवनसाथी होने का रिश्ता
परिवार के साथ निभाती है ।।
भाभी चाची बहूरानी से
मम्मी एक दिन बन जाती है ।
कुछ साल में वक्त बदलते ही
सासू मां बन जाती है ।।
तुलसी का पौधा आंगन में
परिवार को दिल में बसाती है ।
ज्ञान शील के सागर से अपने
बच्चों को शिक्षित बनाती है ।।
किसी और के आंगन की पौधा
मेरे घर की छाया बन जाती है ।
दो दिल एक जान बनकर
जीवन भर साथ निभाती है ।।
युवा कवि / लेखक
( गोविन्द मौर्या – प्रेम जी )
सिद्धार्थ नगर , उत्तर प्रदेश