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20 Feb 2021 · 1 min read

‘प्रिये, तुम प्रण निभाना’

ढले जब शाम की लाली, उजाला चंद्रमा का हो।
नुपुर झंकार करके तुम, सदन मेरे चली आना ।।

मदन बनकर करूँ विचरण, तुम्हारे रूप यौवन में ।
फिरे ज्यों मृग मदलता से, सुगंधित माधवी वन में।।
जलें जब रश्मियाँ नभ में, सिहरती रात हो काली।
प्रिये, मनुहार करके तुम, सदन मेरे चली आना।।

नदी के जिस किनारे पर, मिले थे जब कभी हम तुम।
फला था प्रीत का अंकुर, तुम्हारे होंठ थे गुमसुम।।
उसी पावन प्रणय पथ पर, प्रतिज्ञा को पूर्ण करने को।
प्रिये ,शृङ्गार करके तुम, सदन मेरे चली आना ।।

मिलन की रात में तुमसे, हृदय की बात करनी है।
विरह की आग में शीतल, सुखद बरसात झरनी है।।
बढ़ाकर प्रेम रिश्तों में , रहे खुशहाल माँ का घर ।
सुमन का हार बनके तुम ,सदन मेरे चली आना ।।

विधा _ विधाता छंद आधारित गीत
विधाता छन्द- यह मात्रिक छंद है इसके प्रत्येक चरण में 28 मात्राएं होती हैं 14, 14 पर यति होती है सुविधा की दृष्टि से हम मापनी 1222 1222, 1222 1222 को आधार ले सकते हैं किंतु यह बंधन जरूरी नहीं।

जगदीश शर्मा सहज
13 फरवरी 2021 सांध्यकाल

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 408 Views
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