प्रार्थना नहीं करूंगा मैं
आज तिमिर सी घनघोर निराशा है
आशा है कल आशा की किरण नई निकलेगी
बंजर भूमि से बन जीवन की धार
एक दिन जलधार नई निकलेगी
पर अपने सुखे कंठ के लिए किसी से
अमृत की याचना नही करुंगा मैं
प्रार्थना नहीं करुंगा मैं
कांटे मिलेंगे कांटों पर चलूंगा
फूल मिलेंगे फूलों पर चलूंगा
अपने पैरों के सुख के लिए
कर्तव्य पथ बदलूंगा नहीं
किसी के दिए स्वर्ग के लिए
अपनी वेदना नही त्यागूंगा मैं
प्रार्थना नहीं करूंगा मैं
अमर यहां कुछ भी नहीं है
हार भी नहीं है जीत भी नहीं है
बस एक शुन्य ही सत्ताधारी है
एकान्त से बड़ा कोई मित नहीं है
पर अपने मोक्ष की चाह में
किसी कि मिथ्या वंदना नही करुंगा मैं
प्रार्थना नहीं करूंगा मैं