प्रमाणिका छंद में एक गीतिका
जहीन जो विचार के
गए जहाँ सुधार के
निगाह से पढ़ो जरा
अनेक रूप प्यार के
मिले न चैन ही यहाँ
न जीत के न हार के
कभी मिले न क्यों हमें
निशान भी बहार के
कुबूल ‘अर्चना’ यहाँ
गुनाह एक बार के
जहीन जो विचार के
गए जहाँ सुधार के
निगाह से पढ़ो जरा
अनेक रूप प्यार के
मिले न चैन ही यहाँ
न जीत के न हार के
कभी मिले न क्यों हमें
निशान भी बहार के
कुबूल ‘अर्चना’ यहाँ
गुनाह एक बार के