प्राथमिकता की विश्वसनीयता! प्रतिबद्धता एवं व्यवस्था का आत्मावलोकन!!!!
प्राथमिकता है हर किसी को मिले सुविधाएं,
जीवन जीने से लेकर,खाने-पीने तक की,
पढ़ने-लिखने, और कहने-सूनने की,
सोचने-समझने, और चयन करने की,
कमाने से लेकर,खर्च करने की।
किन्तु प्रतिबद्धता है,जीओ तो हमारी दया पर,
रहो तो हमारी कृपा पर,
खाओ तो हमारी पंसद का खाओ,
पीओ तो हमारी, अनुमति को लेकर पीओ,
पढ़ो-लिखो तो हमारे बनाई व्यवस्था पर,
कहो-सुनो तो हमारी अनुशंसा पर,
सोचो तो हमारे अनुकूल हो,
चुनो तो हमारे माकूल हो,
तरक्की चाहिए तो हमारी रहनुमाई पर,
नौकरी चाहिए तो हमारे इसारे पर,
चाहिए यदि खाने-कमाने की आजादी,
तो पानी होगी हमारी रजामंदी।
व्यवस्था तो यह होनी थी,
नागरिकों की शिक्षा के लिए शिक्षा के मंदिर बनें,
नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए, प्रर्याप्त चिकित्सालय बनें,
हर हाथ को काम के लिए,कल कारखाने लगें,
आवागमन की सुविधा के लिए, परिवहन की सुविधा बढ़ें,
पर्यटन के लिए,सुरम्य वादियों को संरक्षण मिलें,
तीर्थाटन के लिए देवस्थलों का सर्किट बनें,
खाद्यान्न के लिए कृषि उत्पादन में निवेश बढ़े,
साग भाजी के लिए, अनुकूल वातावरण बनें,
फल उत्पादन के लिए,बाग बगीचों तक ढुलान की व्यवस्था बने,
उपभोक्ताओं के लिए सुगम बाणिज्य-व्यापार के केन्द्र बने,
नागरिकों में सद्भाव के लिए, उचित वातावरण बनें,
सीमाओं की सुरक्षा के लिए, व्यापक रणनीति बने,
नागरिकों की तरक्की के लिए, शांति का वातावरण रहे।
आज जो दिखाई दे रहा है,वह सामान्य हालात से नहीं हैं,
और यहीं पर आत्मनिरिक्षण का समय है,
शिक्षा हासिल करने के लिए,धन की जरूरत पढ रही,
स्वस्थ रहने के लिए भी धन की जरूरत है पढ़ रही,
रोजगार छुटते जा रहे हैं,
लोग बेरोजगार होते जा रहे हैं,
कल कारखाने में हो रही है तालाबंदी,
उत्पादन में आ रही है कमी,
लागत बढ़ती जा रही है,
उपभोक्ता में क्रय की शक्ति घटती जा रही है,
परिवहन की सुविधा उपलब्ध नहीं हो पा रही है,
पर्यटन की खातिर संसाधन में कमी आई है,
तीर्थाटन भी उपलब्ध नहीं हो पा रही है,
इन सब कारणों से अर्थ व्यवस्था चरमरा गई है,
उधर सीमाओं पर भी, दुश्मन की नजर गढ़ी जा रही है,
हम क्यों असफल हुए जा रहे हैं,
यह आत्ममंथन करने का अवसर है,
इससे निपटने के लिए- विरोधियों से भी चर्चा करने पर नजर रहे,
हम ही सबसे अधिक जानकार हैं,यह अंहकार का असर है,
क्या सूत्र लेकर चले हैं,उस पर विचारने का अवसर है,
सबका साथ,सबका विकास,सबका विश्वास!
यह आप ही का सूत्र वाक्य है,
इस पर विचार करना, यह भी आपका ही अधिकार है।।