प्राण प्रतिष्ठा
मन भेद विभिन्नताओं को दर्शाता है,
मन विचारों का उद् भव स्त्रोत है,
बुद्धि ज्ञान का संग्रह स्थल है,
विचार मंथन सचेतन अवस्था है,
अवचेतन मन वह संग्रहालय है,
जिसमें बेहोशी वास करती है,
“रेनिव्यूशन आवश्यक है,
वरन् अवचेतन मन सीधे क्रियान्वयन में उतर आता है,
जिसे बेहोशी / निंद्रा / तंद्रा
अंध-श्रद्धा
अंध-आस्था
अंध-विश्वास बसते है .।।
अब विशेष ये है
मालिक कौन है
उसकी पहचान है नहीं,
मनमानी वाले तत्व
अपने अपने यथा निर्दिष्ट स्थान पर स्थित नहीं है
तो अव्यवस्था फैल जायेगी,
अत: रियूनियन
अध्ययन
अध्यापन
ज्ञान
फिर अवलोकन
तब जाकर अव्यवस्था समाप्त हो सकती है.
जितना शरीर से दूर आस्था बनाई जायेगी,
व्यक्ति उतना खुद से दूर चले जायेगा,
मनुष्य द्वारा निर्धारित विषय
इंद्रियों के विषय बन जाते हैं,
मन मस्तिष्क को खण्ड खण्ड होने सै बचाने के लिए,,
आपको अपने गुरू की साधना करनी है,
इसी क्रिया को साधना कहते,
वह हुआ साधक,
ऐसे में कोई संबोधक स्वर्ण-मृग आपकी सीता का हरण नहीं कर सकता,
Re-unite your-self