****प्राणप्रिया****
इस जीवन की प्राण हो । हे प्रिय ! तुम महान हो ॥
कड़ी धुप में या सर्द रात में,
लक्ष्य के अनजान राह में,
गमों के दर्द को सहते हुए,
ऊर्जा की करती संचार हो । हे प्रिय ! तुम महान हो ॥
थके हारे से लौटते नीड़ में,
मेरी खामोश सी निगाहों में,
अपने अश्रु पुलक नयनों से,
बनी हौसलों की सांस हो । हे प्रिय ! तुम महान हो ॥
निभाते मधुर संबन्धों में,
देती रही आहुतियां आंगन में,
उदभासित नवल किरण की,
आलोकित प्रकाश पूंज हो । हे प्रिय ! तुम महान हो ॥
जिन्दगी की आपाधापी में,
काली निशा सी रातों में,
कभी छोड़ी नहीं संग मेरे,
सदैव बनी परछाईं हो । हे प्रिय ! तुम महान हो ॥
तुलसी के पास जलते दीये में,
दैविक सामाजिक संस्कार में,
सरल सहज मृदु व्यवहार से,
स्नेह की सतरंगी फुहार हो । हे प्रिय ! तुम महान हो ॥
देखती रही अपनी परिश्रम में,
खुशियां आए सबके जीवन में,
मुस्कान समेटे अधरों पर,
स्नेहशीलता की मिशाल हो । हे प्रिय ! तुम महान हो ॥
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