प्राचीन-नवीन
अक्सर हो जाती हूँ गुम
सोचकर इस ख्याल को
क्या नए पुराने का कभी मेल हो पाता है
या नए पुराने का द्वंद चलता ही जाता है
कभी प्राचीन नवीन पर
तो कभी नवीन प्राचीन पर भारी रहता है
या तालमेल दोनों का यूं ही जारी रहता है
आज के युवाओं द्वारा आधुनिकता को
अपनाकर प्राचीनता को कोसा जाता है
संस्कारों और रिवाजों का मजाक बनाया जाता है
पर देखें जरा सोच कर
यदि होता ना श्वेत श्याम का जमाना
दो रंगों का महत्व किसने होता जाना
हर स्याह के बाद रंगीन समा हो जाता है
फिर क्यों व्यर्थ के विवादों को ढोया जाता है
आज अगर हो नए तो कल प्राचीन होते जाओगे
तो तुम भी कल प्राचीन कहलाओगे
प्राचीन सुरों को ही नवीन तारों में
पिरोया जाता है
तो फिर क्यों आधुनिकता को केवल रोया जाता है
पुराने त्योहारों को इवेंट का रूप दिया जाता है
प्राचीन का नया रूप तब तुम्हें बहुत भाता है
इसलिए नवीन और प्राचीन मिलकर ही
वर्तमान सजाता है
मिलकर तालमेल बिठाना ही एक
नया समाज बनाता है
एक नया समाज बनाता है