*प्राकृतिक संगीत*
कुदरत का कण कण,
हर ओर हर भाव भरा है गीतों से
बिन शब्दों का संगीत बना
रसखान भरा है गीतों से
बूंदों का धरती पर गिरना,
नदियों का कल कल सुर करना
पहुआ का मस्ती से बहना
और कोयल का कू कू यूं करना
संगीत प्रकृति का कितना अद्भुत
हर सुर भरा है भावों से
कुदरत का कण कण
हर ओर हर भाव भरा है गीतों से
जड़ का अपना संगीत सुहाना
जब नदिया गए हैं गाना
सागर भी संगीत मय हो,
प्रकृति गीतों का लिए खजाना
हर शब्द बना है रीतो से,
कुदरत का कण कण
हर ओर हर भाव भरा है गीतों से।।