प्राकृतिक कल
चिड़िया को चिचियाते अब कहा सुनेगा कोई,
पत्तों की सरसराहट,
कानों में पड़ गई जिसके
भाग्यवान होगा वही
गात छू गई हवा,
तो पृथ्वी का आशीर्वाद है l
उस पल में मेरा कैद हो जाना,
शायद मामूली सी बात है l
जो आकर्षण तारों में आता है ,
जिससे सारा शहर सज जाता है l
वो भी गायब है ,
इस मिटटी में पैर पिसरने के …
कुछ खुशनसीब ही लायक है l
जो समय आज आया है,
वो सुन्दर प्राकृतिक कल चुरा लाया है l
सोच रही हूँ मैं !
उस कल को खोज रही हूँ मैं !
न जाने कब मुझे यह खज़ाना मिल जाएगा,
वो वातावरण जो पहले था …
फिर लौट आएगा l
मुस्कान यादव
आयु – 16 साल