“प्राकृतिक आपदाएँ” हाइकु
“प्राकृतिक आपदाएँ”
(प्रलय, आँधी, ज्वालामुखी, अकाल, भूकंप, बाढ़, तूफ़ान, सुनामी)
(1)बढ़ी आबादी
प्रकृति की बर्बादी
जीवन हानि।
(2)रेतीली आँधी
तबाही का मंज़र
दबी सभ्यता।
(3)ईर्ष्या की आँधी
उड़ा ले चली घर
बिखरे रिश्ते।
(4)मन की ज्वाला
धधकते अंगारे
सिसकती भू।
(5)रुलाई धरा
उगल कर लावा
ज्वालामुखी ने।
(6)पड़ा अकाल
बारिश को तकते
प्यासे नयना।
(7)भूकंप कोप
कुदरती कहर
दरकी धरा।
(8) आई बाढ़
बहाकर ले गई
सुख सपने।
(9)तेज़ तूफ़ान
समंदर का क्रोध
डूबे जहाज।
(10)नाम सुनामी
काम प्रलयंकारी
बहती लाशें।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
महमूरगंज, वाराणसी।(उ.प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर