प्राइवेट टीचर की व्यथा
अजब तेरी महिमा है, गजब तेरा बखान,
दर्जा ऐसा मिला तुम्हें, तुझसे नीचे भगवान।
अभिनंदन है पाँव में तेरे, सब करते प्रणाम,
मातु पितु से बढ़कर तू, तेरे चरणों में धाम।
धूप कड़ी हो ठंड पड़ी हो, सेवा में तू लीन,
दीया जैसे जलकर खुद, सबको करता तमहीन।
मेहनत जज्बा और समर्पण, का है मिशाल तू एक,
खिलती न कलियाँ अरमाँ की, पर शिक्षा देता नेक।
कच्ची मृतिका को गढ़ने में, सारी कला अपनाता,
सहला करके ठोकठाक कर, सुंदर समाज में लाता।
अधिकारी प्राधिकारी सब, तेरे बड़े गुन गाते,
अपनी संतानों की शिक्षा, तुझसे भी दिलवाते।
कट रहे थे दिन तेरे , बड़े संयम और सम्मान से,
मगर विपदा आन पड़ी, चीन के शहर वुहान से।
हो गए सब मंदिर बन्द, मस्जिद भी बन्द महामारी से,
शिक्षण संस्थाएं बन्द हुई, कोमल बच्चों की लाचारी से।
कुछ दिन खिसके ऐसे तैसे, जैसे समय की मार रही,
लेकिन आपदा आगे बढ़ी, आजीविका ताक राह रही।
जिसके आस से जीता था, उनके दर भी बंद हुए,
चॉकलेट टॉफी बच्चों के, अरमाँ खंड खंड हुए।
बहुत दिनों की सेवा देकर, आज ये ऐसा हाल हुआ,
शिक्षालय बंद होने से , प्रशासन भी कंगाल हुआ।
कुछ को मिले जीने खाने को,कुछ माल खा मालामाल हुए
मानवता शर्मायी शासन सत्ता पर , आस के बुरे हाल हुए।
जीवन यापन के लिए , धन है बहुत जरूरी,
अन्तरकरुणा यह कहती, सम्मान हुई मजबूरी।
हर जगह बस मान मिले हैं, माल कोई नहीं देता,
गुरु सम्मान बचे कैसे?, बस भूख कोई हर लेता।
क्या करें ? कैसे करें ? , हे दाता तू ही जता दे,
ऐसा शिक्षक बनने की सजा, ऐसी है क्या बता दे।
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अशोक शर्मा , लक्ष्मीगंज (कुशीनगर)26.05.21.
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