प्रश्न
प्रश्न
रोटी -दाल का
जान – माल का
हक-हुकूक का
तहज़ीब -सुलूक का
आपसी व्यवहार का
आज-कल-वर्षों का
सदियों से अब तक
टल रहे हैं
टाले जा रहे हैं
कभी अवकाश नहीं
कभी मन नहीं
कभी अनावश्यक
कभी असावधानी
कभी मनमानी
कभी आनाकानी
अंततः
अनुत्तरित
अपूरित
क्या करें
किससे कहें
अन्धा कानून
गूगी कचहरी
सरकारें बहरी
प्रश्न पर प्रश्न पर प्रश्न
नेता नग्न-नग्न-नग्न
उत्तरदाता व्यस्त
गुन्डे मस्त
जनता पस्त
जवाब?
लाठी-गोला-बारूद
मूल से दस गुना सूद
अनावश्यक वज़ूद
हो रहे हैं लोग गोलबन्द
प्रश्नों पर
माँग पर
हक पर
प्रश्न उत्तर चाहते हैं
प्रश्न पोल खोलेंगे
प्रश्न बन्द करेंगे
मनमानी
देना ही होगा जवाब प्रश्नों का
खोजना ही होगा अंततः
समाधान
नहीं टिक सक्तीं
काली शक्तियां
थोथी मस्तियाँ
प्रश्नों से हट कर
असल धारा से कट कर
पराई कमाई हड़प कर
आँसुओं की धार नहीं
रहम की दरकार नहीं
लड़िए
प्रश्न पर
अड़िए हक पर
कीजिए सवाल
होंगे बवाल
प्रश्न लेकिन
वैग्यानिक-ज्वलंत -बुनियादी हों
बस
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@डा०रघुनाथ मिश्र ‘सहज’
अधिवक्ता /साहित्यकार
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