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25 Sep 2018 · 1 min read

प्रश्न

प्रश्न

चलता रहता है सतत वार्तालाप,
कभी उलाहना देते हुए,
कभी सजदा करते हुए,
कभी आँसूओ का सैलाब
कभी तुम्हारी पुलक का अहसास
कभी मौन में व्यक्त करते आभार
कभी उमड़ पड़ता है ढेर सा प्यार।
कभी खुली की खुली रह जाती हैं आंखे,
देख कर तुम्हारे अनोखा संसार
तुम क्या हो पृभु, नही समझ आता तुम्हारा पारावार
क्यो झुपाते हो मुझ से अपना असली रूप
लगता है तुम यह भी हो वह भी हो,
क्या नहीं हो तुम पालनहार
जब मैं ओर तुम नही हैं Lअलग
फिर यह कैसा पर्दा,
बूंद ओर सागर में कैसे यह अलगाव।
में तारा ही सही, तुम हो आकाश
में हूँ किरण अवश्य, तुम सूर्य का प्रकाश
मुझे मत समझना अलग
हो सकता है हो जाऊं नाराज।

Language: Hindi
273 Views
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