प्रश्न चिन्ह
प्रश्न चिह्न?
मैं कहाँ खड़ी हूँ?
एक पथ है दो राहों का जिससे उलझन में पड़ी हूँ
मन संशय और जीवन प्रश्न चिह्न फिर उलझन में आन पड़ी हूँ।
एक लम्बा चौड़ा पथ है पर जीवन बना निरअर्थ है
है चहल–पहल भी वहाँ, फिर भी अकेली खड़ी हूँ
क्यों अब तक वर्ष बीते मम रक्तरंजित से,
पहुँच कर भी दूर रही क्यों स्व मंजिल से।
क्यों, फिर भी बाट में उसकी खड़ी हूँ।
नयन हुए नदियाँ–झरने और कभी बने बादल
ऐसा नहीं कि बढ़ नहीं पाऊँगी आगे ,
नहीं है कुछ भी मुश्किल।
एक द्धंद नित चलता है मन मस्तिष्क में
नहीं मिलता कोई हल
कुछ अपने अभी भी थाम रहे मुझको
कुछ करते आए शुरू से छल
किस मोड़ पर ले आया भाग्य कि राह ढूँढना हुआ मुश्किल।
नहीं हाथ में नीलम तेरे, प्रति पल करता रहता वह नव छल।
नीलम शर्मा