{{{ प्रश्न चिन्ह }}}
क्या सीता और क्या पांचाली, हर नारी का यहीं विधान है,
सम्मान उसका प्रश्न चिन्ह सा, जीवन अग्नि के सामान है,,
जिस पांचाली का वस्त्र हरण का, आदेश हुआ भरी सभा में,
दाव पे लगा गए धर्म पत्नी को, यगनसैनि के आँचल का अपमान है,
न करुणा शेष किसी में, मर्यादा भी सब लांघ गए,
क्यों धर्मराज भी मौन रहे, लज़्ज़ित पांचाली क्या कौड़ियों के सामान है,
अश्रुओं से जब भीग गए थे, उसके वस्त्र और श्रृंगार सारे,
टकटकी लगाए देख रहे सब , पचाली के निवस्त्र होने को ..
द्वारिकाधीश ने लाज बचाई,.. अपनी बहन का मान रखा
किया श्रृंगार फिर कृष्णा का ,फिर भी शोषित उसका मान है,,
सीता भी चल दी वनवास राम संग, छोड़ के सारे सुख साधन,
पति में ही स्वर्ग दिखा , वही उसके जीवन का अभिमान है,
लगी उसकी पवित्रता को नज़र, हो गयी वो शिकार है,
ले गया जबरन रावण उसे,, किया सीता के भक्ति का अपमान है,,
पर न छुआ उसके आँचल को कभी, न परछाई के पास गया,
रावण ने सीता से आग्रह कर , उसकी अनुमति को दिया संम्मान है,
राम सीता दोनो ही तो वर्ष अलग थे,धोबी के शक पे अग्नि परीक्षा सीता ने दी,
फिर राम ने क्यों न दी अग्निपरीक्षा , उनका चरित्र भी शक के सामान है,
ये कैसी मानसिकता ,ये कैसी विडंबना हैं ,जिसने सीता को छुआ भी नही,
फिर क्यों उस रावण को हर साल हैं जलाते, कौरवों को सब भूल गए,
जिसने दूषित किया पांचाली का मान है