चार दिन की जिंदगी मे किस कतरा के चलु
चर्चाएं हैं तुम्हारे हुस्न के बाजार में,
मैं तुझसे नज़रे नहीं चुराऊंगी,
तू शबिस्ताँ सी मिरी आँखों में जो ठहर गया है,
माईया गोहराऊँ
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
गारंटी सिर्फ़ प्राकृतिक और संवैधानिक
माँ का अबोला / मुसाफ़िर बैठा
मंत्र : दधाना करपधाभ्याम,
किसी का कुछ भी नहीं रक्खा है यहां
कैसे मैं खुशियाँ पिरोऊँ ?