प्रवासी मजदूर
शाम का समय है बसन्त जमीन पर बिछी एक चटाई में लेटा हुआ है,
मन में कुछ चिंता है लेकिन अपनी पत्नी से बोल नही पा रहा है,
“सुना जी आपने सरकार मजदूरों के लिए स्पेशल ट्रेन चलाने जा रही है”
सुनीता ने अपने पति बसन्त से कहा,
हां सुना तो है अभी कुछ देर पहले ही रेडियो पर खबर आई है,
बसन्त ने गले भरी आवाज में कहा,
मुन्नी रो रही है जाओ खाने के लिए कुछ ले आओ,
“सुनीता ने कहा”
अभी कहां से ले आऊं,
कब तक रोयेगी रोने दो रोते रोते सो जाएगी,
सुबह होगा तो ले आऊंगा,
बसन्त ने सुनीता से चिढ़ते हुए कहा,
मन ही मन बसन्त खुद को कोष रहा था,
अपने भूखे बच्चों को खाना भी नही खिला पा रहा हूँ,
लानत है मुझपर,
खिलाऊँ भी तो क्या,
दुकान भी नही खुलता, खुलता भी तो कैसे लाता,
पैसे भी खत्म हो गए है
बबलू भी सबेरे खाना मांगेगा,
हे भगवान! कैसी परीक्षा ले रहे हो, ये लॉक डाउन में गरीबो का हाल बेहाल हो गया है,
“मन ही मन कुढ़ता है”
एक साल पहले बसन्त अपनी पत्नी और छोटे छोटे दो बच्चों को लेकर मजदूरी करने शहर आया था,
और कोरोना के चलते लॉक डाउन में वही फंस गया है,
इस लंबी लॉक डाउन में जितने पैसे कमाए थे खत्म हो गए है,
और लॉक डाउन बढ़ता ही जा रहा है,
सारा काम बंद खाने के भी लाले पड़ गए है,
पास के चौराहे में सुबह एक बार एक एन जी ओ खाना बांटती है उसे ही खाकर दिन कटता है, आधा खाना खुद खाते है आधा बच्चों के लिए बचाकर रखना पड़ता है न जाने कब खाना मांग दे,
घर में राशन खत्म हो गया है
तभी उसका पड़ोसी हाथ पोछते हुए आता है,
“और भाई बसन्त क्या सोच रहे हो”
सुरेश बसन्त से पूछता है,
कुछ नही भइया क्या सोचूंगा,
यही सोच रहा हूँ कि घर कैसे जाएं,
पैसे तो है नही , जब खाने को ही नही है
उससे अच्छा है कि प्रलय आ जाये और दुनिया पूरी समाप्त हो जाय,
भाई ऐसा क्यों बोल रहे हो
अब तो सरकार मजदुरों को घर जाने के लिए ट्रेन शुरू करने वाली है,
सुरेश,बसन्त का पड़ोसी के साथ साथ उसका एक अच्छा दोस्त भी है,
वह हमेशा बसन्त की मदद करता है
दोनो एक ही घर के सदस्य जैसे ही रहते है,
लेकिन बसन्त भी खुद्दार इंसान है,
वह सुरेश को भी अच्छे से जानता तभी अभी के हालात को देखते हुए उससे कुछ भी मदद नही चाहता।
सुरेश कहता है “बसन्त हम लोग परसो घर के लिए निकलेंगे तैयार रहना तुम लोग भी”
चलो अब सो जाओ सबेरे निकलना है,
सुरेश चला गया अपनी जुग्गी में ,बसन्त की जुग्गी सुरेश की जुग्गी से 3 जुग्गी बाद में है,
सुरेश के परिवार में वो पति पत्नी दो लोग ही है,
सुरेश की पत्नी धनिया भी बसन्त के बच्चों से बहुत प्यार करती है, वो रोज सबेरे उसके बच्चों को रोटी खिलाती है,
बसन्त रात भर सोया नही है उसको अपने परिवार की चिंता सताए जा रही है,
कैसे घर जाएं बिना पैसों के,
यहां रह भी नही सकते है, कब तक ऐसे जीवन बीतेगा,
ये लॉक डाउन अभी खुलने वाला नही,
सुबह होते ही बसन्त, सुरेश के घर गया
भइया आपके पास कुछ पैसे होंगे,
घर जाने के लिए मेरे पास एक रुपिया भी नही है,
आपकी मदद की आवश्यकता है,
“हिम्मत करके बोला”
अरे पागल इसमे शरमा क्या रहा है,
सुन मेरे पास अभी 950 रुपये है, 450 को रख और हाँ इसे एहसान मत समझना,
बड़े भाई की सौगात समझ,पहले क्यो नही बोला था,
बच्चों को कुछ खिलाया है कि नही
“चिंतित होते हुए बोला”
“अरि धनिया बच्चों को रोटी खिला आ फिर हम लोग निकलेंगे”
बसन्त ध्यान से सुन हम लोग की ट्रेन आज 11 बजे की है, सो हम अभी निकल जाएंगे,चलते चलते समय हो जाएगा,
तुम्हारी ट्रेन शाम को 7 बजे आएगी,
तुम बाद में जाना,और हां बात याद रख भूखा मत रहना,
धनिया बच्चों को खाना खिलाकर आती है, फिर दोनों चल पड़ते हैं,,,
अब बसन्त की चिंता भी थोड़ी कम होती है,
थोड़े पैसे तो मीले अब कुछ सहारा है,
दोपहर होते ही बसन्त भी अपने परिवार के साथ निकल पड़ा,
स्टेशन पहुंचते पहुंचते सब थक गए थे, इतनी दूरी तय करने के बाद थोड़ा सुस्ताया,
उसकी जुग्गी से स्टेशन की दूरी 20 किलोमीटर है, दोपहर
लगभग 2 बजे होंगे जब निकला था, बीच मे एक ठेले वाले से एक दर्जन केला लिया था,
सुस्ताने के बाद टिकट काउंटर में गया तो टिकट की कीमत सुनकर उसके होश उड़ गए,
टिकट की कीमत पहले से 20 प्रतिशत अधिक था,
वह ये सोचकर आया था कि सरकार मजदूरों के लिए छूट दे रहा होगा,
उसके पास अभी 400 बचे थे, एक टिकट की कीमत 500रु था,
हताश होकर कहा
चलो सुनीता हम कभी घर नही पहुँच पाएंगे,
स्टेशन से दूर जाकर पेड़ की छांव में बैठकर वो लोग केला खाने लगे,
सब दुखी थे ,
केले वाला उसे केला एक कागज के टुकड़े में बांधकर दिया था,केला खत्म होने के बाद वह उस टुकड़े को पढ़ने लगा, और सरकार को कोशने लगा ऐसे ही मजदूर स्पेशल ट्रेन चला रहे हो टिकट का कीमत बढ़ाकर,
उस पेपर में लिखा था
“विदेशो में फंसे भारतीयों को सरकार अपने खर्चे पर भारत लाएगी”
बसन्त दुखी हुआ लेकिन कर भी क्या सकता था, वह घर के लिए निकल गया था 1250 किलोमीटर दूर कैसे तय करेगा कुछ समझ नही आ रहा था,
लेकिन अब घर तो जाना ही है,
उस पेड़ की छांव में पूरा परिवार आराम कर रहा था,
लेकिन बसन्त को चिंता सताए जा रही थी,
रात के 8 बज गए थे,
मन को शांत करने के लिए उसने गाना सुनने के लिए रेडियो चालू किया,
रेडियो पर समाचार आ रहा था, समाचार में प्रधानमंत्री जी जनता तो सम्बोधित करते हुए बोल रहे थे
“अभी हम सब को आत्मनिर्भर बनना होगा”
खासकर गरिब तबके और किसान को,
रेडियो बन्द करता है और सबको लेकर रात में ही घर के लिए निकल पड़ा,
मन ही मन अपने आप को कोष रहा था, और सरकार को उसकी नाकामी पर गुस्सा हो रहा था,
लेकिन परिवार की जिम्मेदारी भी थी और घर भी पहुँचना था,
अब तो ठान लिया है कि पैदल ही घर जाना है चाहे जो भी हो जाये।।
– विनय कुमार करुणे
(18/05/2020)