प्रवासी का दर्द…2
प्रवासी का दर्द
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छोड़ कर गांव को
पीपल वाली छांव को
घर रम्भाती गाय को
मां के टूटे पांव को
छोड़कर आ गया था वो
शहर में
लेकर नंगें पांव को
रोटी की तलाश में
बेटी की शादी में दहेज देने के लिए
बेटे की पढ़ाई के लिए
मां के इलाज के लिए
और ……..
बीवी की रेशम की साड़ी के लिए
भूखा-प्यासा लगा रहता अभागा
दिन -रात मशीन पर
मशीन बनकर
अपने ही देश में बन गया परदेशी
क्योंकि ये था प्रवासी
कौन पढ़ता इसकी उदासी
लाखों सपने लेकर आया था
और हज़ार रुपए लेकर गया था घर
जहां हजार रुपए आटे में नमक के बराबर ही तो थे।
ना हुआ मां का इलाज
ना जमा हुई बेटे की फीस
ना जमा हुआ बेटी की शादी के लिए दहेज
और इस बार भी ना था सका बीवी की साड़ी।
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डॉ. नरेश कुमार “सागर”
01/02/2021