प्रवचन
प्रवचन #संस्मरण
एक संत प्रवचन कर रहे थे।श्रोता गण मंत्र मुग्ध होकर भगवान कृष्ण की रासलीला का आनंद ले रहे थे ।भगवान शिव का गोपी बनकर रासलीला में शामिल होने का प्रसंग बेहद पसंद आ रहा था ।बीच बीच में तालियों की आवाज से पंड़ाल गूँज रहा था ।तभी संत जी ने कहा- बोलो ब्रह्मचारी भगवान कृष्ण की- जय,कुछ लोग ही बोल पाये ।सभी अचंभित थे क्योंकि भगवान कृष्ण को ब्रह्मचारी कहना समझ नहीं आ रहा था।संत श्रोताओं की मनोदशा समझ गये और कहा इसमें भ्रमित होने की बात नहीं है ।ऐसा ही भ्रम गोपियों को भी हुआ था ।एक बार गोपियाॅ अगस्त्य ऋषि को भोग देने जा रही थी, तभी यमुना में बाढ़ आ गई ।यमुना पार होने का उपाय पूछने कृष्ण के पास पहुँची ।कृष्ण ने कहा कि यमुना से प्रार्थना करना कि यदि हमारे कृष्ण ब्रह्मचारी हो तो मार्ग प्रदान करें ।इस पर सभी सखियाॅ हॅसने लगी ।अरे, कन्हैया सदा हमारा पीछा करता है और खुद को ब्रह्मचारी कहता है ।सभी यमुना के पास जाकर रास्ता माॅगती है, पर यमुना पार होने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था ।तब कहने लगी- हे यमुना माई यदि हमारे कृष्ण ब्रह्मचारी हो तो रास्ता प्रदान करें ।यमुना जी ने रास्ता दे दिया ।यमुना पार अगस्त्य जी को भोग प्रसाद खिलाकर,लौटते समय पूछा- यमुना नदी पार होने का उपाय बताइए ।मुनि ने कहा- यमुना से प्रार्थना करना कि यदि अगस्त्य ऋषि निराहार हो तो मार्ग प्रदान करें । अब तो गोपियाॅ अचंभित हो गई, इतना भोजन कराने के बाद भी ऋषि निराहार है ।यह सोचते हुए आकर यमुना से प्रार्थना की तो मार्ग मिल गया ।यमुना पार होकर भगवान कृष्ण के पास पहुँची और अपनी शंका कह सुनाई ।कृष्ण ने कहा जिस प्रकार से तुम्हारे प्रेम भाव के कारण मैं तुम्हें चाहता हूँ, इस चाह में वासना का कोई स्थान नहीं है तो ब्रह्मचारी हूँ ।उसी प्रकार ऋषि अगस्त्य को भोजन पाने- खाने की चाह नहीं है, वह तो मुझे भोग लगाते हैं और उनके अंदर विराजमान कृष्ण को खिलाते है ।ऋषि अगस्त्य तो आजन्म उपवासी व निराहार है ।गोपियाॅ भगवान कृष्ण छलिया छलिया कह कर चिढाने लगीं ।
इस कथानक से श्रोताओं को भगवान कृष्ण की लीला समझ में आ गई और संत जी के साथ ब्रह्मचारी भगवान कृष्ण की जय से पंड़ाल गूँज गया ।
ब्रह्मचारी भगवान कृष्ण की जय हो ।।
राजेश कौरव सुमित्र