प्रलोभन महिमा
प्रलोभन महिमा
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यदा- कदा संवाद मधुर, छल का परिचायक।
मान – प्रतिष्ठा ज्ञान सभी वह बातें कर- कर।
जिससे हो गुणगान तुम्हारा समय- समय पर।
मोह- पाश, भ्रमजाल अश्रुदायक दुखदायक।
यदा- कदा संवाद मधुर, छल का परिचायक।।
नित्य प्रलोभन देकर; हठकर तुझे मनाना।
यथा पिपासु तात सदा धूसर को बनाना।
इन से रहना दूर गोत्र इनका खलनायक।
यदा- कदा संवाद मधुर, छल का परिचायक।।
धूर्त, लोमड़ी, श्वान अगर, गुणगान करेंगे।
स्वप्न दिखा सुखसार, यहीं नुकसान करेंगे।
छद्मवेश निज ह्रास, नहीं विश्वास के लायक।
यदा- कदा संवाद मधुर, छल का परिचायक।।
सिद्ध सभी व्यवहार, प्रलोभन देंगें कसमें।
अन्तर रखना मित्र! न आना इनके वश में।
दुर्जन अधम असन्त से रक्षक बस गणनायक।
यदा- कदा संवाद मधुर, छल का परिचायक।।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’ (नादान)
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार