प्रयोजन
मैं चाहती हूं, अगले जन्म में –
भगवान मुझे पेड़ बनाए।
किसी एकांत में खड़ा
एक कम खुरदुरे तने वाला पेड़।
जिसे हारे हुए प्रेमी कसकर गले लगा सकें।
और मुझे सुना सकें,
प्रेम में खुद के खत्म होने की कथा।
निश्चिंत, नि:संकोच होकर।
और फिर जब वो प्रेमी बूढ़े हों जाएं,
तो काट दिया जाए मुझे।
मेरे तने से बना दी जाय चारपाइयां,
और तब मैं देर रात
उनकी आंख से गिरते हुए आंसुओं को सोख लूंगी।
और उन्हें आराम दूंगी, जितनी भी दे सकूंगी।
मेरी टहनियों को काटकर बना देना लाठियां।
जिससे मैं उन अकेले कदमों की
अंतिम साथी बन सकूंगी।
और फिर जब वो प्रेमी,
प्रेम और पीड़ा को जीते हुए मर जाएं, तो –
मुझे यानी उन लाठियों और चारपाइयों को तोड़ देना।
और रख देना उन प्रेमियों की चिता पर।
ताकि मैं उन हारे हुए प्रेमियों के हृदय,
और शरीर के साथ जलते हुए –
अपने अस्तित्व के प्रयोजन को पूरा करते हुए राख हो सकूं।