प्रयास जारी रखें
यह कैसा दौर है,
बाहर देखो बहुत शोर है,
इस चकाचौंध में
खोये कितने अपने ओर हैं,
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पल्लू में कुछ है नहीं,
दहाड़ मारते जैसे युवा शेर,
समय समय का फेर है,
संध की जगह बैठे चोर,,
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देही के बल हो रहे,
समझ का पीट गया सत्यानाश,
आशा की किरण डूब गई,
धंधा पानी सब बैठ गये,,
जीवन मरण समान है,
बन गया अभिशाप,
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आग लगी चहुंओर,
निरे मूर्ख,, देख पाते नहीं,
विकास के नाप पर,,
चहुंमुखी बढ़ते गया विनाश,
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कहे की सुनते कोनी,
बेमतलब सब बात,
ढ़ीठ ऐसे जन्म लियो,
बात २ पर पूछे जात.
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साखी साहेब कबीर लिखे,
मिटा दियो अन्धकार,
जब से प्रवचन परवान चढे,
तमस हो गयो साकार.
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~ महेन्द्र सिंह ~