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26 Sep 2023 · 1 min read

प्रयास जारी रखें

यह कैसा दौर है,
बाहर देखो बहुत शोर है,
इस चकाचौंध में
खोये कितने अपने ओर हैं,
.
पल्लू में कुछ है नहीं,
दहाड़ मारते जैसे युवा शेर,
समय समय का फेर है,
संध की जगह बैठे चोर,,
.
देही के बल हो रहे,
समझ का पीट गया सत्यानाश,
आशा की किरण डूब गई,
धंधा पानी सब बैठ गये,,
जीवन मरण समान है,
बन गया अभिशाप,
.
आग लगी चहुंओर,
निरे मूर्ख,, देख पाते नहीं,
विकास के नाप पर,,
चहुंमुखी बढ़ते गया विनाश,
.
कहे की सुनते कोनी,
बेमतलब सब बात,
ढ़ीठ ऐसे जन्म लियो,
बात २ पर पूछे जात.
.
साखी साहेब कबीर लिखे,
मिटा दियो अन्धकार,
जब से प्रवचन परवान चढे,
तमस हो गयो साकार.
.
~ महेन्द्र सिंह ~

Language: Hindi
504 Views
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