प्रयागराज संगम
प्रयागराज संगम
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शहरों में अपना शहर प्रयागराज का रूप निराला है। यहां पर कवियों ने कविता ,शायरों ने गज़ल के माध्यम से, तो नेताओं ने सत्ता संभाल कर शहर को उत्तमतर बनाने में सहयोग किया। छात्र राजनीति में आगे बढ़कर विधायक, सांसद बने। इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने देश को प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक और शिक्षक के रूप में अनेकानेक रत्न दिये। प्रयागराज की धरती ऐतिहासिक है और सभ्यता,संस्कृति तथा शिक्षा में अनुपम रही है। वर्तमान समय में भी एक तरफ विश्वविद्यालय से लेकर न्यायालय तक तो दूसरी ओर देवालय, शहर के अंदर सेठ- साहूकार, उद्योगपति कॉलेज, डिग्री कॉलेज, महिला कॉलेज तथा टेक्निकल-आईटीआई कॉलेज और कोचिंग संस्थानों की खान है। सुबह से शाम तक सलोरी-कटरा, नैनी खान चौराहों पर अनेक अनजाने, बहुभाषी बहुसंस्कृत पोशाक वाले छात्र मिल जाएंगे।
ब्रिटिश गुलामी के दौर में ऐसे ही छात्रों की भीड़ से एक छात्र भारत की आजादी के लिए शहीद हुआ- उस मां भारती के पुत्र का नाम आज भी विश्वविद्यालय के परिसर में छात्रों के लिए प्रेरणा स्रोत का काम कर रहा है| शहीद छात्र का सपना था,मुल्क अपना आजाद हो ,सबको शिक्षा स्वास्थ्य,रोजगार, रोटी ,कपड़ा मकान मिले, यह सपना आज टूटता नजर आ रहा है| आए दिन अखबार की सुर्खियों में यह देखने को मिलता है कि आज कटरा या सलोरी में एक प्रतियोगी छात्र ने बेरोजगारी से हताश होकर आत्महत्या कर लिया।
खूबसूरती की नजर से देखा जाये तो प्रयागराज बेजोड़ है, जैसे सुभाष चौराहा, पत्थर गिरजाघर, घंटाघर ,चंद्रशेखर पार्क ,मिंटो पार्क, नैनी का नया ब्रिज आदि। पार्कों की खूबसूरती में कालिख पोतने का काम, प्रेम के नाम पर अशिक्षित आवारा असामाजिक तत्व कर रहे हैं।
यह धरती आस्था का केंद्र है। मनीषियों की कर्म भूमि, मोक्षदायिनी गंगा ,संकट मोचन हनुमान मंदिर, आदि शंकराचार्य की नौलखा मंदिर ,श्रद्धालुओं की अभिलाषा पूर्ण करने की अनन्य धर्म स्थली है। “संगम जो आया , मनवांछित फल पाया”- यह स्लोगन कर्मकांडी वैदिक मंत्रों के ज्ञाता तथा कथावाचकों के मुख से सुनने को मिलता है, किन्तु एक सवाल जेहन में उठता है – संकट मोचन शिक्षा व धन की देवी के रहते हुए यहां गरीबी और अशिक्षा क्यों है? यहाँ के भिखारी कब सम्मान पूर्वक रोटी पाएंगे; इनको कपड़ा, शिक्षा ,स्वास्थ्य ,भौतिक जरूरतों की पूर्ति कब होगी?
खिलौनों से खेलने की उम्र में बच्चे अपने माता-पिता -भाई आदि के साथ बैठकर खिलौना, चाय – पानी , पान- गुटका बेच रहे हैं। स्कूल कॉलेज जाने की उम्र में मदारी बनकर खेल तमाशा दिखा रहे हैं | कहीं सिंदूर बेचकर अपना खर्च चला रहे हैं, तो कहीं छोटी-छोटी बेटियां भी गौरा पार्वती बनकर नृत्य करते हुए सबके सामने हाथ फैला रही हैं। कोई केला, समोसा,या पैसा देता है तो ,कोई अशिक्षित मूर्ख व्यक्ति अनावश्यक डाटकर गाली भी देता है।
बच्चों का यह बचपन शिक्षा से हटकर अंधकार की ओर बढ़ रहा है। आजकल लोकगीतों से यह आवाज आती है -“अंधा, लंगड़ा, रोगी ,भिखारी पुकारे माई तोहरे द्वारे”, आजकल भिखारी देवी देवताओं को न पुकाकर, पैसे वालों को पुकार रहे हैं, जिससे उनको पेट भरने को कुछ सहायता मिल सके। ध्यातव्य है कि स्वस्थ शरीर, स्वस्थ-स्वच्छ वातावरण में,यदि स्त्री संतान को जन्म दे तो,वह बालक तेजस्वी कुशाग्र बुद्धि, स्वस्थ शरीर का होगा, इसीलिए अरस्तु ने कहा “स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है” लेकिन एक गर्भवती स्त्री भिखारियों के साथ बैठकर या घूम-घूम कर, पैसा भोजन मांग कर,जीवन गुजारे तो बच्चे के ऊपर क्या असर पड़ेगा? यदि यही स्थिति रही तो यह वाक्य कैसे पूर्ण होगा, जिस ने यह कहा है कि- “कल के भावी शासक बैठे हैं विद्यालय के बच्चों में ” सबसे बदहाल स्थिति शहर के मलिन बस्तियों की है। यहाँ गरीबी और अशिक्षा का व्यापक साम्राज्य देखा जा सकता है | सूर्योदय से पहले एक सम्पन्न बालक परिवार के साथ कुत्ता टहलाने पार्क में जाता है| वहीं मलिन बस्ती का बालक कूड़ा बीनने के लिए नंगे पांव गलियों में जाता है| कभी-कभी माता-पिता परिवार के साथ तो कभी अपने मित्र टोली के साथ। वकीलों की फौज होते हुए भी गरीबों को इंसाफ दिलाने वाला कोई नहीं। स्कूल- कॉलेज- विश्वविद्यालय के होते हुए भी यहाँ गरीब परिवार और उनके बच्चे शिक्षा से वंचित हैं । इसका मुख्य कारण महंगी शिक्षा का होना, सरकारी शिक्षा के ढ़ाँचे को सही तरह से लागू न करना, सरकारी दावे-नेताओं के खोखले वादे , अपूर्ण योजनाएं आदि हैं। इनकी भौतिक तथा प्राथमिक जरूरतें पूर्ण नहीं हो पा रहीं हैं | शहर दो वर्गों में बँटा है- गरीब-अमीर और शिक्षित-अशिक्षित गरीबों के पास सरकारी सपनों के सिवा कुछ भी नहीं है। जैसे उच्च शिक्षा ,अच्छा स्वास्थ हर हाथ रोजगार ,पक्का मकान आदि।
शासन- प्रशासन, अधिकारियों, समाजसेवियों तथा शिक्षकों व सामाजिक, संगठनों से अनुरोध है कि इन्हें समाजिक सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य, सभ्यता तथा वैज्ञानिकता की मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास कर अपना दायित्व पूर्ण करें। तभी प्रयागराज का अर्थ अपने आप में पूर्ण हो सकेगा।
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ऋषि कुमार ‘प्रभाकर’
पता-खजुरी खुर्द,तह. कोरांव प्रयाग