प्रमेय
डॉ अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
* प्रमेय *
गर खिलो तो सूरज मुखी से खिलो
प्रतिभा अपनी को चहुँमुखी विकसित करो ।
गर खिलो तो सूरज मुखी से खिलो
संशयात्मक ज्ञान का मत ज्ञान लो ।
व्योम में तुम कल्पना के सुमन खिलाओ
स्वप्न दृष्टा बनों प्रखर उधयमी बनों ।
न हो विकल नीति सुनिश्चित तो करो
खण्ड खण्ड हो जाओगे, नाहक चिंता न करो ।
विधि के विधान के दांत गिन पर्वत हनन करो
तन को वज्र जैसा बनाओ हिम्मत करो ।
कौन कहता है पुरुष, सृष्टि में सर्वोच्च है ।
मगर ये भरम, तुम तो पाले ही रहो ।
गर खिलो तो सूरज मुखी से खिलो ।
प्रतिभा अपनी को चहुँमुखी विकसित करो ।
प्रतिस्पर्धा से लेकर प्रीति का परामर्श, आगे बढ़ो ।
ईर्ष्या से विखंडित होना अब बिल्कुल त्याग दो ।
सूर्य पुत्र हो तुम्हारी क्षमताएँ होंगी असंख्य ।
अपनी ऊर्जा को मात्र धनात्मक कर्म में केंद्रित करो ।
हार से हार तुम कभी स्वीकार कर मत लेना ।
हार को हथियार बना कर वार अरि पर करो ।
गर खिलो तो सूरज मुखी से खिलो
प्रतिभा अपनी को चहुँमुखी विकसित करो ।
गर खिलो तो सूरज मुखी से खिलो