प्रभु मोकों शरणागत कीजे
प्रभु मोकों शरणागत कीजे!
मैं अधम, नीच खल कामी,
मैं पापी हूँ नामी गिरामी।
भव सागर में डूब रहा हूँ,
मेरी बाँह पकड़ लीजे।
जानता नहीं मैं जप, तप, जोगू,
ताही सों दारुण दुख भोगूँ।
जैसा भी हूँ दास आपका,
कृपालु कृपा कीजे।
हे दीन बंधु दीन हितकारी,
आयौ स्वामी शरण तुम्हारी।
मेरौ गजेंद्र सम संकट टारौ,
नाथ अभय कीजे।
भई परिस्थति अब अति दुष्कर,
त्रास दे रहे मुझको यम चर।
मृत्यु भय मुझको व्याप रहा है,
त्राण मोहि दीजे।
नहिं अवगुन मेरे चित धारौ,
मोहि भरोसौ आपकौ भारौ।
हे दीनानाथ दया के सिन्धो,
दयालु दया कीजे।
जयन्ती प्रसाद शर्मा