प्रभु के चरण
माना है जब से सुख को सपन
दुःख में भी खुश हैं तब से अपन
सामर्थ इतनी देना विधाता
मुरझाए न दुःख में तेरा चमन
दिन चार रहना सुख दुःख की नगरी
कष्टों को करते रहें नित नमन
ख़ुशी रोकने से रुकती नहीं
दुःख टालने का करें क्यों जतन
चादर समय की साथ जहां तक
वहीँ तक ख़ुशी-गम हो वतन
दुःख से उबारे यदि ईश हमको
ह्रदय में रखें नित प्रभु के चरण