प्रभु -कृपा
प्रभु-कृपा
प्रभु-चरणों की है आस ।
उनसे ही चलती है श्वास ।
कण-कण में उनका है वास ।
यही हमारा है विश्वास ।
माया का जो है पाश ।
उससे भ्रमित है प्राणि मात्र।
लोभ, मोह, मदादि जो हैं षड़विकार।
इनसे ही मानव-मन है लाचार ।
गुरु-कृपा ही वह है मार्ग।
जिससे मिलता है मुक्ति-द्वार ।
प्रभु-कृपा से ही होता कल्याण।
मानव-जन्म का होता है उद्धार ।
– डॉ० उपासना पाण्डेय