प्रभु आशीष
कोई ऐसी रात
नहीं है
जिसका हुआ न हो सवेरा
दुख जाएगा
सुख आएगा
चाहे दुख तेरा हो या मेरा
रोने से दुख कम होता हो तो अश्रु बहा ले तू जीवन भर
खुद को इतना कर मजबूत कि औरों के
तू खुद आंसू हर
उन्हें छोड़ न देना डरकर
बोझिल राहें भरे हैं कांटे
तेरा जीवन सफल तभी है हटा शूल
पर दुख को तू बांटे
उम्मीदें करना न किसी से
और न उपेक्षा की तू परवाह कर।
जाना है तुझे उस मुकाम पर
कई आंखें लेकर उम्मीदें
टिक जाएं बस तेरे मुख पर
आगे बढ़ कि बन पाए तू
किसी के पैरों की बैसाखी
दूजे को न तू सुख दे पाएगा
जब तक दुख की कड़वाहट न चाखी
प्रभु सदा अपने प्यारे को
करवाते हैं कष्ट के दर्शन
दुख में तपकर खरा स्वर्ण बन
फिर सेवा में कर तन मन अर्पण।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
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