‘प्रभात वर्णन’
देख सूरज लालिमा को, रात उठकर के चली।
अब यहाँ क्या काम मेरा , सोचकर आँखें मली।।
व्योम में फैला उजाला, खिल रही है हर दिशा।
आँख फाड़े देखती है, चौंककर भोली निशा।।
जागकर सारे पखेरू, चहुँ दिशा में उड़ चले।
हिम शिला निज रूप तजकर, बह नदी में जा
मिले।।
फूल भी खिलने लगे हैं, संग पाकर भोर का।
मंदिरों में शंख बजता , राधिका चितचोर का।।
बह रही सरिता मुदित हो, मृग विचरते कुंज में।
कीर बैठा खा रहा है , आम्र फल तरु पुंज में।।
धार काँधे हल चला है, अन्न दाता खेत में।
सूर्य की किरणें बिखरके, लोटती हैं रेत में।।
मंद शीतल वात बहती, रागिनी सी बज रही।
भिन्न पादप अल्पना से, पुण्य वसुधा सज रही।।
देख प्यारी सुबह आयी, चेतना लेकर नई।
पूर्ण होंगे आज सबके, स्वप्न सुंदर से कई।।
– गोदाम्बरी नेगी