“प्रभात छौंक”
“प्रभात छौंक”
सुबह उठी श्रीमती,
तीब्र थी बहुत गति।
कुछ बुद – बुदा रही,
प्रभात गान गा रही।।
मिर्चियों का छौंक दे,
सोतो को जगा रही।
कुक्कुट सी बांग दे,
तेर – टेर लगा रही।।
सबके प्राण – घ्राण मे,
जगी आस प्रीत त्राण मे।
मति का लक्ष्य ये पति,
श्रीमती बड़ी इठला रहीं।।
कह रहीं मुदित मन,
घर का प्रत्येक जन।
सुखी रहे व स्वस्थ हो,
इसलिए नाश्ता बना रही।।
समय की बड़ी कमी,
छौंक – छींक की नमी।
बात – बात पर बिगड़,
बता – बता सता रही।।
नोक-झोंक से दूर दूर,
छौंक छौंक जगा रही।
कास कण्ठ देख मेरे,
अनूठा सुख पा रही।।
डॉ.कमलेश कुमार पटेल “अटल”