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7 Apr 2022 · 1 min read

प्रभात के कण!

शीर्षक – प्रभात के कण!

विधा – कविता

परिचय – ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़, सीकर राज.
पिन – 332027
मो. 9001321438

आज प्रभात के कण
बैचेन थोड़े इधर के।
रूप जाल में सिमटा
सूर्यप्रभा का दृश्य।

उनींदी सी अलसाई
पूर्व दिशा की अरूणिमा।
अंगड़ाई लेती ओट हो
किसी प्यार के पर्वत।

अंचल चंचल चपल रश्मियाँ
क्रीड़ित नभ से उतर
सिमटी जा अधर युग्ल
रूप छवि प्रकट हुई
इधर हृदय के कोने में।

Language: Hindi
1 Like · 240 Views
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