प्रद्युम्न हम बहुत शर्मिंदा हैं
प्रद्युम्न हम बहुत शर्मिंदा हैं
तेरे कातिल क्यों जिंदा हैं ?
माँ का आँचल कह रहा तड़पकर
क्यों मिला लाल को मौत का फंदा है ?
स्कूल तेरा कैसा ये धंधा
उसमें वहशी घूम रहे
विद्या के पावन मंदिर में
रक्त मासूम का चूस रहे ।
कैसे इस सभ्य समाज मे
अबोध निशाना बन जाते हैं
रम रहे मानव में ही दानव
जो शिकार उन्हें बना जाते हैं ।
कैसे मनुज वो कहला सकते
जो कृत्य दनुज के करते हैं
विद्या के पावन मंदिर में भी
अपराध अक्षम्य वो करते हैं ।
कहाँ शिक्षा पाएँगे बच्चे
आज प्रश्न मानवता पूछ रही
कैसे निश्चिन्त हों मात पिता
जब विद्यालय में पशुता घूम रही ।
डॉ रीता