प्रदूषण
प्रदूषण
कारण क्या जो बढे प्रदूषण,
दोषी है इंसान।
छेडछाड प्रकृति संग करता,
बना स्वयं भगवान।।
पर्वत खोद बनाता नदियाँ,
उल्टा करें ढलान।
गिट्टी मिट्टी रेत निकाले,
बन मूरख अनजान।।
डाल गंदगी नदियाँ भरता,
भूतल करे सपाट।
अम्बर में उडकर इठलाता,
यही मानवी ठाट।।
नई नवेली फेक्ट्री बनती,
अपशिष्टों की मार।
सही नहीं निपटारा करता,
कचरा बदबू दार।।
वायु जल और पृथ्वी तल को,
करता है नुकसान।
कई तरह फैले बीमारी,
यही प्रदूषण जान।।
स्वयं मार कुल्हाड़ी मानव,
करता अब पछताव।
सुधरे बिना नहीं हो सकता,
चोट रोग ज्यों घाव।।
राजेश कौरव सुमित्र