Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 Jan 2022 · 7 min read

प्रदीप छंद और विधाएं

#प्रदीप_छंद (एक चरण चौपाई +दोहे का विषम चरण )
16,13 पर यति कुल 29 मात्राएं. (यह मात्रिक‌ छंद है )

विशेष निवेदन ~चौपाई चरण का पदांत चौपाई विधान से ही करें ,
एवं दोहे के चरण का पदांत दोहा विधान से‌ ही करें ) चौपाई के चरण में 16 मात्रा गिनाकर पदांत. रगण ( 212 ) जगण 121 , तगण 221से‌ वर्जित है ।

यह‌ गेय छंद है , इससे –
मूल छंद‌‌ –
मुक्तक ,
गीतिका ,
गीत ,
पद काव्य
लांँगुरिया गीत
लिखे जा सकते हैं।

सोलह -तेरह मात्राओं का , न्यारा छंद प्रदीप है |
चार. चरण का प्यारा जानो , रखना बात समीप है |
विषम चरण है चौपाई सा , सम दोहा का है प्रथम ~
है‌‌ सुभाष लय इसमें पूरी, विज्ञ जनों की टीप है |
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
विषय- मित्र (चार चरण के दो युग्म में )

मित्र सदा मिलता रहता है , भाई‌‌ खोजे यार में |
सुख दुख में वह‌ साथ निभाता, जुड़ा रहे परिवार में ||
करे‌ सामना आलोचक से , कमी‌‌ नहीं तकरार में |
सदा मित्र‌‌‌ को अच्छा मानें , अपने नेक विचार में ||

(अब यही युग्म मुक्तक में )

मित्र सदा मिलता रहता है , भाई‌‌ खोजे यार में |
सुख दुख में वह‌ साथ निभाता, जुड़ा रहे परिवार में |
करे‌ सामना आलोचक से , तर्कों के आधार पर –
सदा‌ मित्र को अच्छा‌ मानें , अपने नेक विचार में |
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
पुन: दो युग्म

मित्र‌‌ इत्र सा जिसको मिलता , खुश जानो संसार में |
हाथ मानिए भाई‌ जैसा , अपने घर परिवार में ||
मिले सूचना यदि संकट की , मित्र कृष्ण अवतार‌ में |
आकर हल करने लगता है , लग‌ जाता उपचार में ||

(अब यही युग्म मुक्तक में )

मित्र‌‌ इत्र सा जिसको मिलता , खुश जानो संसार में |
हाथ मानिए भाई जैसा , अपने घर परिवार में |
मिले सूचना यदि संकट की , आए कृष्णा भेष में ~
बिना कहें हल करने लगता , लग जाता उपचार में |
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब यही युग्म अपदांत गीतिका में ….

मित्र सदा मिलता रहता है , भाई‌‌ खोजें यार में ,
सुख-दुख में वह‌ साथ निभाता, जुड़ा रहे परिवार में |

करे‌ सामना आलोचक से , तर्को के‌ आधार‌ पर ,
सदा मित्र को अच्छा मानें , अपने‌ नेक विचार में |

कभी मित्रता हो जाती है , मन ‌से उपजी बात में ,
कृष्ण- सुदामा सुनी कहानी , दादी‌ के सुखसार में |

सदा मित्र का साथ निभाओं ,‌ हितकारी आधार पर,
रखो बाँधकर भाई‌ जैसा , अपने दिल के‌ तार में |

आसमान से‌ ऊँची दुनिया , सदा‌ मित्र की‌ देखिए‌ |
मिलते ही मन खिल जाता है , सुख आता दीदार में ||

मित्र खबर पर दौड़ा आता , कृष्णा के परिवेश में |
भरी सभा में लाज बचाता , लग जाता उपचार में ||
===============================

अब इन्हीं‌ सभी युग्मों से गीत तैयार है….

मित्र सदा मिलता रहता है , भाई‌‌ खोजे यार में | (मुखड़ा)
सुख दुख में वह‌ साथ निभाता, जुड़ा रहे परिवार में || (टेक)

मित्र‌‌ इत्र सा जिसको मिलता , खुश जानो संसार में |(अंतरा)
हाथ मानिए भाई‌ जैसा , अपने घर परिवार में ||
मिले सूचना यदि संकट की , मित्र कृष्ण अवतार‌ में |
आकर हल करने लगता है , लग‌ जाता उपचार में ||

करे‌ सामना आलोचक से , कमी‌‌ नहीं तकरार में |(पूरक)
सुख दुख में वह‌ साथ निभाता, जुड़ा रहे परिवार में || (टेक)

कभी मित्रता हो जाती है , मन से‌ उपजे‌ प्यार में |(अंतरा)
कृष्ण- सुदामा सुनी कहानी , हमने‌ घर परिवार में |
सदा मित्र का साथ निभाओ , हितकारी आधार में |
रखो यार को‌ भाई‌ जैसा , अपने नेक विचार में ||

मिलते ही मन खिल जाता है , सुख आता दीदार में ||(पूरक)
सुख -दुख में वह‌ साथ निभाता, जुड़ा रहे परिवार में || (टेक)

आसमान से‌ ऊँची दुनिया , देखी‌ है संसार. में |(अंतरा)
भाई जैसा मित्र जहाँ है , दिल के जब दरवार में ||
सदा‌ मित्र‌ को रहते‌ देखा , अपने मन आधार‌ में |
एक जान मित्रों को‌ कहते‌, दुनिया की रस धार‌ में ||

सदा मित्र का साथ न छोड़ो, पड़ो न सुभाष खार‌ में |(पूरक)
सुख -दुख में वह‌ साथ निभाता, जुड़ा रहे परिवार में || (टेक)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
प्रदीप छंद आधारित पद काव्य

मतलब का संसार है |
कपटी करता मीठी बातें , खूब दिखाता प्यार है ||
हित अनहित को नहीं विचारे , करे पीठ पर वार है |
कूट- कूटकर भरी हुई है, चालाकी दमदार है ||
भाव भरे हैं जिसमें घातक , रखता सबसे खार है |
कहे ” सुभाषा ” बचकर रहना , वर्ना हर. पग हार है ||
~~~~~~~
प्रदीप छंदाधारित लांँगुरिया गीत {पांँच अंतरा का)
(आप सबसे निवेदन हो ही चुका है कि लांँगुरिया लोक भाषा गीतों को खड़ी हिंदी में लाने का प्रयास है , टेक और -उड़ान को गायक बीच में कहीं से भी तोड़कर अलाप- क्षेपक के साथ आगे लय भर सकता है |

टेक- लांँगुरिया दीवान री |
उड़ान ~ उसका करती मान री ~ 2

अंतरा~
सुनो सजनिया गोरी कहती , नहीं समझ नादान री |
लांँगुरिया अलबेला मेरा , उसे बहुत पहचान री ||

पूरक ~ लांँगुरिया का गान री |
उड़ान ~ उसका करती मान री ~2

अंतरा~
लांँगुरिया से जब-जब मेरी , होती न्यारी बात री |
प्रेम रंग से खिल जाती है , मेरी पूरी रात री ||

पूरक ~ बतलाती मैं ज्ञान री |
उड़ान ~ उसका करती मान री || ~2

अंतरा ~
लांँगुरिया से बनते रहते , मेरे प्यारे छंद री |
हँसती रहती लांँगुरिया ‌सँग , होंठों से मैं मंद री ||

पूरक~ लांँगुरिया है भान री |
उड़ान ~उसका करती मान री ~2

अंतरा
बातें उसकी मीठी लगती , खिल जाते है फूल री |
‌सुनकर शीतलता भी आती , मन. के झड़ते शूल री ||

पूरक ~ मधुरम उसका गान री |
उड़ान ~करती उसका मान री ~2

अंतरा
रहूँ देखती मैं लांँगुरिया , मन के बजते तार री |
सुनो सहेली हम दोनों में , अद्भुत रहता प्यार री ||

पूरक ~ लांँगुरिया ईमान री |
उड़ान ~करती उसका मान री ||~2

~~~~~~

प्रदीप छंदाधारित गीत

करें निवेदन मित्रों पहले , हिंदी छंद विधान की |
दोहा चौपाई को लेकर , लेखन के उत्थान की ||

दोहा जिनको लिखना आता , सही मापनी जानते |
जो चौपाई की गति यति भी , विधि सम्मत ही मानते ||
सभी छंद को वह लिख सकते ,यह हमको अनुमान है |
लिखते देखा श्रेष्ठ गणों को , जिनकी अब पहचान है ||

दोहा के सँग रक्षा करते , चौपाई सम्मान. की |
करें निवेदन मित्रों पहले , हिंदी छंद विधान की ||

जो अपनाकर अपवादों को , निजी सृजन को मोड़ते |
रगण जगण से यति चौपाई ,करके विधि को तोड़ते ||
सृजन भटकता देखा उनका , बनते खुद उपहास है |
मात् शारदे अनुकम्पा के , बनते कभी न खास. है ||

ध्यान कलन का जो रखते है , कलम वहाँ गुणगान की |
करें निवेदन मित्रों पहले, हिंदी छंद विधान की ||

सही तरह. से अठकल बनता , रहता छंद प्रवाह है |
दोहा लेखन सुगम बनाता , आगे दिखती राह. है ||
अठकल का चौपाई. में भी , योगदान बेजोड़ है |
हाथ जोड़कर कहे ‘सुभाषा’ ,समझा यही निचोड़ है ||

सदा सीख की चाहत रखता , पाना कृपा निधान की |
करें निवेदन मित्रों पहले , हिंदी छंद विधान की |
~~~~~~~~
प्रदीप छंद गीत
सोच जहाँ पर खो जाती है , रहे न मानव चाल. में |
मुफ्त पिलाकर आदी करते , मदिरालय. के जाल में ||

चार चरण का दोहा होता , दो मिलते है मुफ्त. में |
काम सौपते तुकमुल्ला का , कहते रहिए. रफ्त में ||
आदत गंदी डाल रहे है , देकर भाव उधार में |
चरण खोजता कवि घूमेगा ,सुबह-शाम अखवार में ||

मिलें देखने क्या- क्या नाटक,स्वांग दिखे सब ताल में |‌‌
मुफ्त. पिलाकर आदी करते , मदिरालय‌ के जाल. में ||

चरण. बाँटते चूरण जैसा , दानवीर सरदार. है |
क्रमशा: बाँट प्रशस्ति हँसते, ऐसे‌ भी दरबार है ||
नहीं सोचना कवि को पड़ता , मिले दान में भाव है |
काम कीजिए तुक मुल्ला का , अच्छा भला चुनाव है ||

वर्ण. शंकरी सृजन. बनाते‌ , लावारिश की ढाल में |
मुफ्त पिलाकर आदी करते , मदिरालय के जाल. में ||

नहीं सोचना. पड़ता कवि को , रच जाता साहित्य है |
चरण मिले खैरात जहाँ पर, नहीं वहाँ लालित्य है ||
वाह- वाह जी अब क्या कहना , अच्छी पैदावार ‌ है |
पटल बनाकर ठेके पर अब , कवि करते तैयार है ||

होटल जैसे मंच बने है , तड़का देकर. दाल. में |
मुफ्त पिलाकर आदी करते, मदिरालय के जाल. में ||
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

प्रदीप छंद (16-13) (चौपाई चरण + दोहा का विषम चरण )

शब्द प्रशंसा के लिखते हैं ,हम तो इनकी शान में |
गीत गजल मैं सब गाता हूँ , चमचों के सम्मान में |

दरवाजे नेता के मिलते , जैसे रहते श्वान हैं |
इनसे पहले मिलना होता , अद्भुत यह श्रीमान हैं ||
बने बिचौली करते रहते , जनता के सब काम हैं |
इन्हें पूजकर ऐसा लगता , यह तो चारों धाम हैं ||

कैसे होता काम सफल है , मंत्र फूँकते कान में |
गीत गजल मैं सब गाता हूँ , चमचों के सम्मान में |

नेता जी के साथ रहें यह , चोखे यही दलाल हैं |
सदा पकड़ते यह पैसा हैं , होते माला माल हैं ||
कभी नामजद अपराधों में, थानों के सिरमौर थे |
लोग काँपते थर- थर इनसे, इनके भी कुछ दौर थे ||

बदल गया है इनका धंधा , कमी न आई शान में |
गीत गजल मैं सब गाता हूँ , चमचों के सम्मान में |

चमचों की चाँदी रहती , आज किया यह गौर है |
इनका फैला जाल जहाँ पर, कहीं नहीं कमजोर है ||
कार्य प्रणाली‌ अद्भुत इनकी, इनका अजब शुरूर है |
लोकतंत्र में स्वाद बनें है , मीठा पिंड खजूर है ||

मंत्री जी कत्था से खिलते , यह चूना हैं पान में |
गीत गजल मैं सब गाता हूँ , चमचों के सम्मान में |

सुभाष सिंघई जतारा जिला टीकमगढ़ म०प्र०(बुंदेलखंड)

~~~~~~~~~~~

🧭 गीत 🧭 🍓प्रदीप छंद (16-13)🍓
🦜 (चौपाई चरण + दोहा का विषम चरण )🦜

कैसा चलता तंत्र यहाँ पर , आग लगी ईमान में ||
सत्य सदा ही रोता रहता , देखों हिंदुस्तान में |
🦜 ‌
हाथ जोड़कर जब हम जाते , आफिस में ललकारते |
चार कमी फायल में देखें , ऐसा वहाँ निहारते ||
जेब देखते बाबू पहले , अपनी नजर पसार के |
रहें ‘ सुभाषा’ जब भी खाली , नेंग मिलें दुत्कार के ||
🧭
भोग लगाना सीखो पहले , आकर कहते कान में |
सत्य सदा ही रोता रहता , देखों हिंदुस्तान में |
🗾 ‌‌
गुंडे चमचे जब भी जाते , बाबू सब मनुहारते |
उन्हें बैठने कुर्सी देते ,काम सभी स्वीकारते ||
नहीं विनय की इज्जत होती, घुड़की से अपमान है |
दीन हीन अब रोता रहता , लोकतंत्र हैरान है ||
🧑‍🎄
जन गण के अधिनायक देखों , मस्त रहें निज गान में |
सत्य सदा ही रोता रहता , देखों हिंदुस्तान में |
👾
सैनिक बनते जाकर बेटे , अपने यहाँ किसान के |
मजदूरों के भी बनते देखे , भरे हुए ‌ ईमान के ||
जब शहीद वह हो जाते है , चार फूल तैयार हैं |
हश्र बुरा है उनके पीछें , भूखे सब परिवार हैं ||
😤
नेताओं के मौज उड़ाते , घूमें अपनी शान में |
सत्य सदा ही रोता रहता , देखों हिंदुस्तान में |
😩
सुभाष सिंघई जतारा ( टीकमगढ़) म०प्र०( बुंदेलखंड) ✍️

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
सुभाष सिंघई
एम•ए• हिंदी‌ साहित्य , दर्शन शास्त्र जतारा(टीकमगढ)म०प्र०

============
आलेख- सरल सहज भाव शब्दों से छंद को समझाने का प्रयास किया है , वर्तनी व कहीं मात्रा दोष हो तो परिमार्जन करके ग्राह करें
सादर

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 2216 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
हम लहू आशिकी की नज़र कर देंगे
हम लहू आशिकी की नज़र कर देंगे
Dr. Sunita Singh
दोहा- अभियान
दोहा- अभियान
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
महिलाएं जितना तेजी से रो सकती है उतना ही तेजी से अपने भावनाओ
महिलाएं जितना तेजी से रो सकती है उतना ही तेजी से अपने भावनाओ
Rj Anand Prajapati
मौसम है मस्ताना, कह दूं।
मौसम है मस्ताना, कह दूं।
पंकज परिंदा
*पुरस्कार तो हम भी पाते (हिंदी गजल)*
*पुरस्कार तो हम भी पाते (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
पढ़ो और पढ़ाओ
पढ़ो और पढ़ाओ
VINOD CHAUHAN
कहाँ लिखूँ कैसे लिखूँ ,
कहाँ लिखूँ कैसे लिखूँ ,
sushil sarna
इंतज़ार के दिन लम्बे हैं मगर
इंतज़ार के दिन लम्बे हैं मगर
Chitra Bisht
इन रेत के टुकडों से तुम दिल बना ना पाये।
इन रेत के टुकडों से तुम दिल बना ना पाये।
Phool gufran
4522.*पूर्णिका*
4522.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
ऊपर चढ़ता देख तुम्हें, मुमकिन मेरा खुश हो जाना।
ऊपर चढ़ता देख तुम्हें, मुमकिन मेरा खुश हो जाना।
सत्य कुमार प्रेमी
"अहसास"
Dr. Kishan tandon kranti
उस जैसा मोती पूरे समन्दर में नही है
उस जैसा मोती पूरे समन्दर में नही है
शेखर सिंह
ज़ख़्म ही देकर जाते हो।
ज़ख़्म ही देकर जाते हो।
Taj Mohammad
जनता का पैसा खा रहा मंहगाई
जनता का पैसा खा रहा मंहगाई
नेताम आर सी
प्यारा-प्यारा है यह पंछी
प्यारा-प्यारा है यह पंछी
Suryakant Dwivedi
"आंखों के पानी से हार जाता हूँ ll
पूर्वार्थ
जब ज्ञान स्वयं संपूर्णता से परिपूर्ण हो गया तो बुद्ध बन गये।
जब ज्ञान स्वयं संपूर्णता से परिपूर्ण हो गया तो बुद्ध बन गये।
manjula chauhan
प्रणय गीत --
प्रणय गीत --
Neelam Sharma
लिखने के आयाम बहुत हैं
लिखने के आयाम बहुत हैं
Shweta Soni
घर-घर तिरंगा
घर-घर तिरंगा
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
रमेशराज की पत्नी विषयक मुक्तछंद कविताएँ
रमेशराज की पत्नी विषयक मुक्तछंद कविताएँ
कवि रमेशराज
वो गुलमोहर जो कभी, ख्वाहिशों में गिरा करती थी।
वो गुलमोहर जो कभी, ख्वाहिशों में गिरा करती थी।
Manisha Manjari
जन्मदिन की हार्दिक बधाई (अर्जुन सिंह)
जन्मदिन की हार्दिक बधाई (अर्जुन सिंह)
Harminder Kaur
अब तो मिलने में भी गले - एक डर सा लगता है
अब तो मिलने में भी गले - एक डर सा लगता है
Atul "Krishn"
इश्क़ किया नहीं जाता
इश्क़ किया नहीं जाता
Surinder blackpen
Best Preschool Franchise in India
Best Preschool Franchise in India
Alphabetz
*हिंदी तो मेरे मन में है*
*हिंदी तो मेरे मन में है*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
दिल का दर्द
दिल का दर्द
Dipak Kumar "Girja"
प्रशांत सोलंकी
प्रशांत सोलंकी
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
Loading...