प्रथम दृष्ट्या प्यार
सुनी जब उसकी वाणी दिव्य, लगी मुझको वीणा की तान ।
कोकिला हुई अचंभित, मौन, कौन गाता यह मीठा गान ?
और मुखमंडल जैसे चंद्र, नेत्र ज्योति के पुंज समान ।
अधर कोमल कमलों की भाँति, रूप की है वो ऐसी खान ।
मेरे हृदय के झंकृत तार ।
किए हैं उसने पहली बार ।
हुआ है मुझको उससे अभी,
मित्रवर! प्रथम दृष्ट्या प्यार ।।
— सूर्या