प्रतीक्षा
प्रतीक्षा
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दीर्घ अतिदीर्घ हो चला वक्त
तेरी राह तकते -तकते।
उम्मीद थी लौटेगा का तू
मेरे बाल पकते -पकते।
ये उदित किरण।
अस्ताँचल रवि निहांरू
हफ्ते-हफ्ते।
न सन्देश न कोई खबर।
तेरा नाम रटते -रटते।
जाने कब हो हरा ये खंड्हर।
बसन्त भी आ के लौट गया।
तेरी राह नपते-नपते।
घर की दीवारे ज़रजराई।
मकां लगते से दरकते।
जड भी चेतन हो चले अब
हम बने जड़ से लगते।
आओ तुम तो।
हो सुकूं तब।
“बेटा”!!!!! तुम नाही समझते।
देखें तुम को तो यें निकलें।
तन से प्राण भी नाही सरकते।
सुधा भारद्वाज
विकासनगर उत्तराखण्ड़