प्रतीक्षा
सदियों से किसकी
करते हो प्रतीक्षा?
बिछाते हो घास का
कोमल बिछौना।
चाॅंद-सूरज की
जलाकर बाती।
छेड़ते हो दिशाओं में
नित नई रागिनी।
जिसके लिए यह साज सब
कौन है वह कामिनी?
धड़क रहा
सिर्फ किसके लिए
सदियों से निरन्तर
नेह पूरित तुम्हारा हृदय ?
संगी साथी कितने ही
बने छूटे तुम्हारे,
मगर अकेले करते
तुम अपना सफर।
भटक रहे क्यूं
ओ मेरे यायावर?
कुछ तो बता दो
जानकर मुझको अपना।
सदियों से किसकी
करते हो प्रतीक्षा?
प्रतिभा आर्य
अलवर (राजस्थान)