प्रतीक्षा
देह झुलसाती आषाढ की गर्मी ,
पूस माह की कंपकपाती सर्दी ,
सावन में कडकडाती बिजली,
और चारों तरफ झमाझम बारिश…
ये सब मेरे लिये एक जैसा ही था,
क्योंकि मेरे लिये प्रेम ही सावन – भादों ,
प्रेम ही शरद – बसन्त ,
प्रेम ही भोर – सांझ,
और प्रेम ही दिन – रात था ।
मैं आज भी उच्छवास में वैसे ही प्रतिक्षारत हूँ ,
जैसे पतझड़ के बाद नवपातियों की
प्रतीक्षा में लालायित वृक्ष ..
सूखी जर्जर भूमि पर वर्षा की पहली बूँद,
पौधा बनने के लिये भूमि में छुपा अंकुरित बीज ,
मैं आजीवन प्रतीक्षारत हूँ ,
तितिक्षु बान यही सुखद है मेरे लिये …