Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Jul 2021 · 2 min read

”प्रतिस्पर्धा ”

जिस रफ्तार से इंसान ने प्रकृति का ह्रास करना शुरू कर दिया था , प्रकृति को भी अपना परिचय देना आवश्यक लगा और हो गई शुरू प्रतिस्पर्धा।

भाई ज़माना ही प्रतिस्पर्धा का है फिर चाहे इंसान इंसान के बीच की बात हो या फिर इंसान का मुकाबला किसी और जीव से ही क्यों न हो। कोरोना भी अपने किस्म का एक जीव ही है। या यूं कहें कि परजीवी है और प्रकृति का हिस्सा है और जीवों की तरह प्रतिस्पर्धा की ताक़त रखता है। उसके सूक्ष्म आकार पे जाने की भूल इंसान को बहुत भारी पड़ सकती है। इंसान के अस्तित्व पर भी बात आ सकती है।

ये महज़ एक इत्तेफ़क है कि इंसान का पाला ऐसे कम ही जीवों से पड़ा है जो उस पर भारी पड़े हों। यही कारण रहा कि इंसान अपनी मनमानियां करता चला गया और ख़ुद का ही दुश्मन बन बैठा। प्रकृति ने तो सिर्फ अपनी सूझबूझ से इंसान को उसके घुटने पे ला दिया वो भी एक छोटे से समय अंतराल के भीतर। वर्तमान समय में प्रकृति ने जीवों में संतुलन बनाए रखने का बीड़ा अपने सर लिया है। इस हाहाकार में इंसानों के दुःख को इतना बड़ा दिखाया जा रहा है किंतु उन जीवों का क्या जो अपने अस्तित्व की लड़ाई इंसान के स्वार्थ के रहते हार गए। उनका हाहाकार किसी इंसान को नहीं सुनाई दिया।

अब जब प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई है तब इंसान को उसके बौनेपन का एहसास कुछ हद तक तो होने लगा होगा। अगर अभी भी नहीं तब ये प्रतिस्पर्धा बहुत लंबे समय तक नहीं चलेगी। इंसान को जितनी जल्दी हो सके प्रकृति और अन्य जीवों के साथ संतुलन में जीवन यापन करना सीख लेना चाहिए।

प्रकृति से प्रतिस्पर्धा कहीं ज्यादा महंगी न पड़ जाय।

विवेक जोशी ”जोश”

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 2 Comments · 246 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
हुनर है मुझमें
हुनर है मुझमें
Satish Srijan
हम संभलते है, भटकते नहीं
हम संभलते है, भटकते नहीं
Ruchi Dubey
चाटुकारिता
चाटुकारिता
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
मैं
मैं "लूनी" नही जो "रवि" का ताप न सह पाऊं
ruby kumari
रात निकली चांदनी संग,
रात निकली चांदनी संग,
manjula chauhan
शांति के लिए अगर अन्तिम विकल्प झुकना
शांति के लिए अगर अन्तिम विकल्प झुकना
Paras Nath Jha
दशरथ मांझी होती हैं चीटियाँ
दशरथ मांझी होती हैं चीटियाँ
Dr MusafiR BaithA
सागर से अथाह और बेपनाह
सागर से अथाह और बेपनाह
VINOD CHAUHAN
*Nabi* के नवासे की सहादत पर
*Nabi* के नवासे की सहादत पर
Shakil Alam
नवसंवत्सर लेकर आया , नव उमंग उत्साह नव स्पंदन
नवसंवत्सर लेकर आया , नव उमंग उत्साह नव स्पंदन
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
पितरों के सदसंकल्पों की पूर्ति ही श्राद्ध
पितरों के सदसंकल्पों की पूर्ति ही श्राद्ध
कवि रमेशराज
तोड़ कर खुद को
तोड़ कर खुद को
Dr fauzia Naseem shad
बार बार बोला गया झूठ भी बाद में सच का परिधान पहन कर सच नजर आ
बार बार बोला गया झूठ भी बाद में सच का परिधान पहन कर सच नजर आ
Babli Jha
मसला ये नहीं की उसने आज हमसे हिज्र माँगा,
मसला ये नहीं की उसने आज हमसे हिज्र माँगा,
Vishal babu (vishu)
"भोर की आस" हिन्दी ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
भारत
भारत
नन्दलाल सुथार "राही"
दिल
दिल
Er. Sanjay Shrivastava
*दिल में  बसाई तस्वीर है*
*दिल में बसाई तस्वीर है*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
कैसा दौर आ गया है ज़ालिम इस सरकार में।
कैसा दौर आ गया है ज़ालिम इस सरकार में।
Dr. ADITYA BHARTI
*नारी है अर्धांगिनी, नारी मातृ-स्वरूप (कुंडलिया)*
*नारी है अर्धांगिनी, नारी मातृ-स्वरूप (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
कन्या
कन्या
Bodhisatva kastooriya
रोमांटिक रिबेल शायर
रोमांटिक रिबेल शायर
Shekhar Chandra Mitra
"खुद के खिलाफ़"
Dr. Kishan tandon kranti
सजदे में सर झुका तो
सजदे में सर झुका तो
shabina. Naaz
आज बहुत याद करता हूँ ।
आज बहुत याद करता हूँ ।
Nishant prakhar
इस तरह बदल गया मेरा विचार
इस तरह बदल गया मेरा विचार
gurudeenverma198
अवावील की तरह
अवावील की तरह
abhishek rajak
कभी-कभी एक छोटी कोशिश भी
कभी-कभी एक छोटी कोशिश भी
Anil Mishra Prahari
नन्हीं बाल-कविताएँ
नन्हीं बाल-कविताएँ
Kanchan Khanna
कुंडलिया
कुंडलिया
sushil sarna
Loading...