प्रतिस्पर्धाओं के इस युग में सुकून !!
प्रतिस्पर्धाओं के इस युग में
ईर्ष्या है, ज़लन है, मगर
नहीं मालूम सुकून कहां है?
कभी थोडा़ बाहर आकर देखो
ज़रा भीड़ की दौड़ से, तो पाओगे
कि सुकून के लिए पैसे की दौड़ में
सुकून तो कब का गया,
जो मानवता हम भूल गये।
©️ रचना ‘मोहिनी’