प्रतिष्ठा प्रत्यंचा दांव पर
*** प्रतिष्ठा प्रत्यंचा दांव पर ***
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प्रतिष्ठा प्रत्यंचा लगी है दांव पर
धूप भारी होने लगी है छांव पर
मानव हैवान बन करे अपमान
इंसानियत निचले पायदान पर
नहीं रहे मर्यादा पुरुषोत्तम राम
रावण दिखते हैं हर मकान पर
विश्वासघात कदम कदम पर
विश्वास मत करिए अंजान पर
होने लगे नारी सम्मान तार तार
अपमानित होती लय तान पर
पकड़ से बाहर हुए हैं ख्यालात
हालात छोड़ दिए भगवान पर
गुणवत्ता उड़ कर पखेरू है हुई
नकली सामान बिके दुकान पर
निश्चित मंजिलोंं के घर होते दूर
डरो मत तुम राह सुनसान पर
मनसीरत मौन, गौण, अगोचर
देख कर मानवीय नुकसान पर
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)