प्रतिशोध
प्रतिशोध की आग क्या कुछ नहीं करवा देती
बदले की ये भावना रिश्तों को दरकिनार करती
बिखर जाते मानवता के मूल्य प्रतिशोध की खातिर
महायुद्ध भी हो गये विश्व में अपनी शान की खातिर ।।
द्रौपदी ने आन की खातिर दुर्योधन से बैर लिया
कुवचनों से कुपित दुर्योधन ने ठान लिया
भाइयों के बीच फिर युद्ध की ज्वाला भड़क गई
रिश्ते- नाते भूलकर विकृति मन में घर कर गई ।।
प्रतिशोध की प्रबल भावना इतिहास बन कर रह गई
महाभारत युद्ध की विभीषिका आज कहानी बन गई।।
आज आततायियों ने कोहराम है मचा रखा
इंसानियत को मानव मे मानो गिरवी रख दिया
नारियों की अस्मिता भी कहीं भी सुरक्षित नहीं
प्रतिशोध की ज्वाला नारी- हृदय में है पनप रही ।।
आतंकवादियों ने तो देश की सत्ता ही नकारी
अपने ही घर में सेंध लगा रहे ये दुराचारी
आम मानव सुकून- चैन पल-पल खोज रहा
प्रतिशोध लेने की खातिर जाल वो बुन रहा ।।
प्रतिशोध की भावना सद्विवेक बिसरा देती
मानव को तो ये दानव ही बना देती
स्वरचित जाल में इंसान ही फँस जाता
भविष्य में अपनी करनी पर हाथ मल कर रह जाता ।।
** मंजु बंसल **
जोरहाट
( मौलिक व प्रकाशनार्थ )